
क्या कोई शिक्षण संस्थान बच्चियों की इज्ज़त यूं उधेड़ सकता है?
महाराष्ट्र के ठाणे जिले के शाहापुर में एक स्कूल ने ऐसा किया, जिससे ना सिर्फ बच्चियां सदमे में हैं, बल्कि पूरा देश भी सवालों में है…
घटना रतनबाई दमानी स्कूल, शाहापुर की है — जहां कक्षा 6वीं से 10वीं तक की लगभग 125 छात्राओं को मासिक धर्म जांच के नाम पर कपड़े उतारने पर मजबूर किया गया।
दरअसल, शौचालय में माहवारी के धब्बे मिलने के बाद स्कूल की प्रिंसिपल और स्टाफ ने इंसानियत की सारी हदें पार कर दीं।
उन्होंने सभी छात्राओं को एक-एक कर तलाशी दी, फिंगरप्रिंट तक लिए गए — और यही नहीं, दीवार पर लगे खून के धब्बों की तस्वीरें तक प्रोजेक्टर पर सबके सामने दिखाई गईं।
जब बच्चियां घर पहुंचीं तो रोते हुए सारी बात बताई, जिसके बाद गुस्साए अभिभावकों ने स्कूल में प्रदर्शन किया और पुलिस थाने में धरना दिया।
एक्शन और जांच:
प्रिंसिपल सहित 8 लोगों पर POCSO एक्ट में केस दर्ज किया गया है।
प्रिंसिपल को बर्खास्त करने का आदेश जारी हो चुका है।
घटना के बाद बच्चियों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ने की बात सामने आ रही है।
मासिक धर्म कोई शर्म नहीं, और ना ही कोई अपराध है।
लेकिन अगर स्कूल जैसे संस्थान बच्चियों को शर्मिंदा करने और अपमानित करने का अड्डा बन जाएं, तो सवाल सिर्फ कानून का नहीं, समाज की मानसिकता का भी है।