
क्या पश्चिम बंगाल में बीजेपी अब ‘हिंदुत्व हार्डलाइन’ छोड़कर ‘सामाजिक समावेश’ की ओर बढ़ रही है? समिक भट्टाचार्य के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद बंगाल में सियासी हवा बदली-बदली सी लग रही है। मुसलमानों को लेकर पार्टी की लाइन अब उतनी आक्रामक नहीं, बल्कि सधे हुए शब्दों में “सबका साथ” का संदेश देने की कोशिश है।
बीजेपी लंबे समय से पश्चिम बंगाल की राजनीति में खुद को मज़बूत करने की कोशिश कर रही है, लेकिन मुस्लिम वोट बैंक तक उसकी पहुंच सीमित रही है। अब नए प्रदेश अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य के नेतृत्व में यह तस्वीर बदलने की कोशिश हो रही है।
भट्टाचार्य हर रोज किसी न किसी मुस्लिम बहुल क्षेत्र में जाते हैं, अल्पसंख्यकों से संवाद करते हैं, और साफ संकेत दे रहे हैं कि बंगाल में बीजेपी अब अपना चेहरा और चरित्र थोड़ा नरम करने को तैयार है।
चर्चा है कि पार्टी नेतृत्व ने यह तय किया है कि पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में जहां मुसलमानों की आबादी लगभग 30% है, वहां बिना उनका भरोसा जीते सत्ता में आना मुश्किल है। ऐसे में “हिंदुत्व प्लस समावेश” वाली नीति आज़माई जा रही है।
लेकिन विपक्ष इसे “चुनावी रणनीति” बता रहा है। टीएमसी और लेफ्ट आरोप लगा रहे हैं कि यह महज़ 2026 विधानसभा चुनाव से पहले का “पॉलिटिकल ड्रामा” है।
सवाल यही है:
क्या बीजेपी की बदली भाषा में सचमुच बदलाव छिपा है, या यह महज़ चुनावी चेहरा बदलने की कवायद है?