
उत्तर प्रदेश के इटावा, कन्नौज और अब प्रयागराज में जातीय तनाव तेजी से उभर रहा है। हाल ही में भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने प्रयागराज में सवर्ण दुकानदारों की दुकानों पर तोड़फोड़ की। यह घटना तब हुई जब आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद को हाउस अरेस्ट किया गया। वे कौशांबी और करछना में जातीय हिंसा के पीड़ितों से मिलने जा रहे थे।
इससे पहले, अहीर रेजिमेंट द्वारा इटावा में ब्राह्मण बाहुल्य गांव को बंधक बनाने की खबर सामने आई थी। करणी सेना, यादव समूह, और अब भीम आर्मी जैसे संगठनों की सड़क पर आक्रामक मौजूदगी से साफ है कि यूपी में जातीय टकराव की ज़मीन तेजी से तैयार हो रही है।
सवाल:
क्या यूपी की राजनीतिक फिज़ा जातीय ध्रुवीकरण की ओर बढ़ रही है?
संगठनों का उग्र प्रदर्शन, कानून व्यवस्था के लिए कितना खतरा बन सकता है?
सरकार की भूमिका सिर्फ दिखावे की रह गई है या कोई ठोस कार्यवाही होगी?